जैसे मुम्बई में सिद्धि विनायक प्रसिद्ध हैं वैसे ही पुणे में प्रसिद्ध हैं श्रीमंत दगडूसेठ हलवाई गणपति। 125 वर्ष से भी अधिक पुराना भगवान गणपति का यह प्रसिद्ध मंदिर स्थित है पुणे शहर के मुख्य इलाके बुधवार पेठ में। विघ्नहर्ता भगवान गणेश का यह प्रसिद्ध मंदिर बाजीराव पेशवा के गढ़ शनिवारवाड़ा से कुछ ही कदमों की दूरी पर है। हर दिन सुबह से शाम तक दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। गणेश उत्सव के दौरान हर वर्ष लाखों लोग भगवान विनायक के दर्शन के लिए देश-विदेश से आते हैं। भगवान गणेश की भव्य विशालकाय प्रतिमा लगभग चालीस किलो सोने के आभूषणों से अलंकृत है। गर्भगृह से लगे मुख्य मंडप में चांदी के पत्तरों से दीवारें शोभायमान हैं। मुख्य मार्ग की और वाली मंदिर की दीवार पर कांच की बड़ी सी खिड़की है जिसकी मदद से सड़क पर आने जाने वाले लोग भी मंदिर के बाहर से भी भगवान गणपति के दर्शनों का लाभ उठा सकते हैं। मंदिर के सामने व बराबर वाली गली में प्रसाद की कई दुकानें हैं। गौरीपुत्र गणेश को प्रिय मोदक प्रसाद के रूप में उनको चढ़ाए जाते हैं। मंदिर में प्रवेश भी मंदिर से लगी हुई इसी गली में से ही होता है। इस गली की दुकानों पर सुपारी पर बनी गणपति की छोटी छोटी मूर्तियों भी मिलती हैं जो बहुत ही सुंदर और अपने आप में विशेष होती हैं।
मंदिर की स्थापना तक़रीबन सवा सौ साल पहले पुणे के एक मिठाई विक्रेता व व्यापारी श्री दगडूसेठ हलवाई ने की थी। उनके दो पुत्र थे राम व लक्ष्मण, उन दोनों की मृत्य प्लेग की महामारी फैलने से हो गए थी उसके बाद उन्होंने अपने भतीजे गोविंदसेठ को गोद ले लिया और उनका लालन-पालन किया। बाद में गोविंदसेठ ने पुरानी मूर्ति के स्थान पर भगवान गणेश की नई प्रतिमा स्थापित की, इसी प्रकार गोविंदसेठ के पुत्र दत्तात्रेय गोविंदसेठ ने भी उस प्रतिमा के स्थान पर नई प्रतिमा स्थापित की जो कि आज भी मंदिर में विद्यमान है।
गणेश उत्सव के अलावा मंदिर में प्रतिवर्ष चार उत्सवों का आयोजन किया जाता है। यह चार हैं, आम उत्सव, मोगरा उत्सव, संगीत उत्सव व नारियल उत्सव। आम उत्सव अक्षय तृतीया के अवसर पर मनाया जाता है जिसमें भगवान को ग्यारह हज़ार आमों का भोग लगाया जाता है और अगले दिन उन आमों को प्रसाद स्वरूप भक्तों व ज़रूरत मंदो में वितरित किया जाता है। मोगरा उत्सव बसंत ऋतु में मनाया जाता है और भगवान को हज़ारों की संख्या में मोगरा के फूलों की भेंट दी जाती है व सम्पूर्ण मंदिर को मोगरा के फूलों व अन्य सुंदर फूलों से सजाया जाता है। संगीत उत्सव गुड़ी पडवा से रामनवमी तक चलता है और विभिन्न कलाकारों द्वारा तरह तरह की प्रस्तुतियाँ दी जाती हैं। नारियल महोत्सव विनायक जयंती पर मनाया जाता है और पाँच हज़ार नारियल भगवान विनायक को चढ़ाए जाते हैं और अगले दिन दर्शनार्थियों व जरूरत मंद लोगों में वितरित कर दिए जाते हैं।
गणपति बप्पा का यह भव्य मंदिर धार्मिक गतिविधियों के साथ साथ सामाजिक कार्यों व समाज सेवा में भी अपनी भूमिका निभाता है और भारत की समृद्ध परम्परा को और समृद्ध करने में सदैव कार्यरत रहता है।
-सचिन देव शर्मा