9 जनवरी 2020 : आइए बताता हूँ आपको विशाखापत्तनम की शान के बारे में। रामकृष्ण बीच पर बना “सबमरीन म्यूजियम” विशाखापत्तनम की शान और पहचान दोनों बन चुका है। देश की पाँचवी पनडुब्बी आईएनएस कुरसुरा जिसमें 22 टॉरपेडोस (मिसाइल) को ले जाने की क्षमता है, ऐसी पनडुब्बी को 31 साल की सेवा के बाद 2002 में एक म्यूजियम में तब्दील कर दिया गया। यह दक्षिण पूर्व एशिया का पहला सबमरीन म्यूजियम है।
पानी का जहाज़ तो बहुत लोग देख पाते हैं और उस पर यात्रा भी कर पाते हैं लेकिन यदि कोई आम आदमी पनडुब्बी देखने और उसके बारे में जानने की चाहत रखता है तो विशाखापत्तनम का सबमरीन म्यूजियम ही एक विकल्प है। इस पनडुब्बी की लम्बाई है लगभग 91 मीटर, चौड़ाई है 7. 5 मीटर और ड्राफ्ट है 6 मीटर , ड्राफ्ट पानी की वो न्यूनतम गहराई है जो सबमरीन को सुरक्षित रूप से नेविगेट करने के लिए ज़रूरी होती है। यह सबमरीन समुन्दर में तीन सौ मीटर तक नीचे उतर जाने की क्षमता रखती है। जब यह पानी के ऊपर होती है तो अधिकतम 16 नॉटिकल माइल्स मतलब लगभग 30 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से चल सकती है, जब पानी में आधी डूबी हो तो 15 नॉटिकल माइल्स मतलब लगभग 27 किलोमीटर प्रति घंटा और जब पूरी तरह पानी में डूब कर चलती है तब अधिकतम रफ़्तार होती है 9 नॉटिकल माइल्स मतलब लगभग 17 किलोमीटर प्रति घंटा। यह 75 नौसैनिकों के दल को अपने साथ ले जाने की क्षमता रखती है। यह पनडुब्बी दुश्मन के युद्धपोतों को नेस्तनाबूद करने के लिए पानी के अंदर माइंस बिछाने का काम भी बखूबी कर सकती है और 22 टॉरपेडोस के स्थान पर 44 विस्फोटक माइंस भी अपने साथ ले जा सकती है।
पनडुब्बी के अंदर जाकर जब आप उसके कम्प्लीकेटेड सिस्टम को देखते हैं तो आश्चर्य चकित हो जाना स्वाभाविक ही है। पनडुब्बी में प्रवेश करते ही सीधे हाथ पर जो कि पनडुब्बी का अगला हिस्सा है वहाँ पर लगे टॉरपेडोस को साफ देखा जा सकता है। पनडुब्बी के अगले भाग में 4 टॉरपेडोस व् पिछले भाग में 18 टॉरपेडोस को ले जाने का प्रावधान है। प्रवेश करने पर वहाँ पर मौजूद गाइड पनडुब्बी के बारे में थोड़ी जानकारी भी देता है। यदि आप पनडुब्बी के अंदर फ़ोटोस खींचना चाहते हैं तो उसके लिए भी आपको कैमरा या मोबाइल कैमरा का टिकट लेना पड़ता है , वीडियो बनाना सख़्त मना है। पनडुब्बी के अंदर सात कम्पार्टमेंट्स हैं। नौसैनिक दल के रहने, खाने – पीने और आराम करने के लिए पनडुब्बी में विशेष केबिन बनाए हुए हैं। कहीं कहीं चलने के लिए कॉरिडोर बहुत संकरा व् गुफ़ानुमा हो जाता है जहाँ से निकलने के लिए आपको झुक कर निकलना पड़ता है।
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय इस का योगदान महत्वपूर्ण रहा। कुरसुरा को उस समय अरब सागर में तैनात किया गया था, उसका काम था लगातार गश्त कर पाकिस्तानी युद्धपोतों पर निगरानी बनाए रखना और मौका मिलते ही उन्हें नेस्तनाबूद कर देना।
विशाखापत्तनम में इस अद्भुत म्यूजियम को देखना एक सुखद व् आश्चर्यजनक अनुभव रहा यदि आप भी जाएं तो इसे देखना मत भूलिएगा वर्ना इस सुन्दर अनुभव से वंचित ही रह जाएंगे।
-सचिन देव शर्मा
Very well written and informative too.Keep it up!!
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